आज हमारे जीवन पथ पर कूडा है, करकट है। कीचड, गूबड, नाला, पर हम चल रहे हैं, सिमट कर, घिसट कर, चूहा दौड में आगे जो रहना है।
घिन नही आती हमे, आदी हो चुके हैं ना। (वैसे भी हम कीचड से लथपथ हैं।) सड चुक है, तन, मन, जीवन। पर हम चलते जायेँगे, कोइ रुकेगा नही, इस गन्दगी को साफ़ करने। चूहा दौड में आगे जो रहना है।
-शब्दा
Wednesday, November 09, 2005
श्वानों को मिलते दूध वस्त्र भूखे बालक अकुलाते हैं। मां की हड्डी से चिपक ठिठुर जाडे की रात बिताते हैं। युवती की लज्ज वसन बेच जब ब्याज चुकये जाते हैं। पापी ्महलों का अहंकार तब देता मुझको आमंत्रण। झन झन झन झन झन झनन झनन। -दिनकर
परिनदे अब भी पर तोले हुये हैं। हवा में सन्सनी घोले हुयें हैं॥ हमरा कद सिमत कर रह गया है। हमारे पैरहन झोले हुये हैं॥
हमारे हाथ तो काटे गये थे। हमारे पैर भी छोले हुये हैं॥ चढाता फिर रहा हूं जो चढावे। तुम्हारे नाम पर बोले हुयें हैं॥
-दुष्यंत
Thursday, November 03, 2005
येह मेरा पह्ला हिन्दी पोश्ट है।
वन पथ हैन प्रियतर घोर अन्धेरे अओर घनेरे। वादे है जो कर्ने हैन पूरे। और मीलो जाना है सोने से पह्ले। और मीलो जाना है सोने से पह्ले॥