Hindi
हिन्दी कवितायेँ।
Wednesday, November 09, 2005
श्वानों को मिलते दूध वस्त्र
भूखे बालक अकुलाते हैं।
मां की हड्डी से चिपक ठिठुर
जाडे की रात बिताते हैं।
युवती की लज्ज वसन बेच
जब ब्याज चुकये जाते हैं।
पापी ्महलों का अहंकार
तब देता मुझको आमंत्रण।
झन झन झन झन
झन झनन झनन।
-दिनकर
1 comment:
Kanishk | कनिष्क
said...
यह एक अच्छी कविता थी। चिट्ठों की दुनिया में आपका स्वागत है।
9:54 PM
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1 comment:
यह एक अच्छी कविता थी। चिट्ठों की दुनिया में आपका स्वागत है।
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