आज हमारे जीवन पथ पर
कूडा है, करकट है।
कीचड,
गूबड,
नाला,
पर हम चल रहे हैं,
सिमट कर,
घिसट कर,
चूहा दौड में आगे जो रहना है।
घिन नही आती हमे,
आदी हो चुके हैं ना।
(वैसे भी हम कीचड से लथपथ हैं।)
सड चुक है,
तन, मन, जीवन।
पर हम चलते जायेँगे,
कोइ रुकेगा नही,
इस गन्दगी को साफ़ करने।
चूहा दौड में आगे जो रहना है।
-शब्दा
Thursday, November 10, 2005
Wednesday, November 09, 2005
Subscribe to:
Posts (Atom)