Wednesday, November 09, 2005

परिनदे अब भी पर तोले हुये हैं।
हवा में सन्सनी घोले हुयें हैं॥
हमरा कद सिमत कर रह गया है।
हमारे पैरहन झोले हुये हैं॥

हमारे हाथ तो काटे गये थे।
हमारे पैर भी छोले हुये हैं॥
चढाता फिर रहा हूं जो चढावे।
तुम्हारे नाम पर बोले हुयें हैं॥

-दुष्यंत

1 comment:

parag mandle said...

प्रयास अच्छा है, मगर वर्तनी पर ध्यान देंगे तो ज्यादा मज़ा आएगा.