Thursday, November 10, 2005

आज हमारे जीवन पथ पर
कूडा है, करकट है।
कीचड,
गूबड,
नाला,
पर हम चल रहे हैं,
सिमट कर,
घिसट कर,
चूहा दौड में आगे जो रहना है।

घिन नही आती हमे,
आदी हो चुके हैं ना।
(वैसे भी हम कीचड से लथपथ हैं।)
सड चुक है,
तन, मन, जीवन।
पर हम चलते जायेँगे,
कोइ रुकेगा नही,
इस गन्दगी को साफ़ करने।
चूहा दौड में आगे जो रहना है।

-शब्दा

3 comments:

अनुनाद सिंह said...

एक और हिन्दी प्रेमी से मिलकर खुशी हो रही है | अच्छा लिखा है बन्धुवर ! और लिखिये | कभी यहा भी पधारिये :
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अनुनाद सिंह

Pratik Pandey said...

स्‍वागत है आपका हिन्‍दी ब्‍लॉग मण्‍डल में। ऐसे ही लिखते रहें।

विजय ठाकुर said...

बहुत ही सुंदर रचना है ज़नाब। हलाकि मैं मानता हूँ इस कूड़े-कर्कट में भी बहुत कुछ अमूल्य और सुंदर उपलब्ध है।