आज हमारे जीवन पथ पर
कूडा है, करकट है।
कीचड,
गूबड,
नाला,
पर हम चल रहे हैं,
सिमट कर,
घिसट कर,
चूहा दौड में आगे जो रहना है।
घिन नही आती हमे,
आदी हो चुके हैं ना।
(वैसे भी हम कीचड से लथपथ हैं।)
सड चुक है,
तन, मन, जीवन।
पर हम चलते जायेँगे,
कोइ रुकेगा नही,
इस गन्दगी को साफ़ करने।
चूहा दौड में आगे जो रहना है।
-शब्दा
3 comments:
एक और हिन्दी प्रेमी से मिलकर खुशी हो रही है | अच्छा लिखा है बन्धुवर ! और लिखिये | कभी यहा भी पधारिये :
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अनुनाद सिंह
स्वागत है आपका हिन्दी ब्लॉग मण्डल में। ऐसे ही लिखते रहें।
बहुत ही सुंदर रचना है ज़नाब। हलाकि मैं मानता हूँ इस कूड़े-कर्कट में भी बहुत कुछ अमूल्य और सुंदर उपलब्ध है।
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